एक बार महात्मा बुद्ध एक गांव में ठहरे हुए थे। वे प्रतिदिन शाम को वहाँ पर सत्संग करते थे। भक्तों की भीड़ होती थी, क्योंकि उनके प्रवचनों से जीवन को सही दिशा बोध प्राप्त होता था। बुद्ध की वाणी में गजब का जादू था। उनके शब्द श्रोता के दिल में उतर जाते थे। एक युवक प्रतिदिन बुद्ध का प्रवचन सुनता था। Satsang Ka Mahatva
भगवान बुद्ध ने समझाया सत्संग का महत्व | Gautam Buddha Satsang Ka Mahatav
एक दिन जब प्रवचन समाप्त हो गई तो वह बुद्ध के पास आया और बोला महाराज मैं काफी दिनों से आपका प्रवचन सुन रहा हूँ, किंतु यहाँ से जाने के बाद मैं अपने गृहस्थ जीवन में वैसा सदाचरण नहीं कर पाता जैसा यहाँ से सुनकर जाता हूँ। इससे सत्संग के महत्त्व पर शंका भी होने लगती है। बताइए मैं क्या करूँ? बुद्ध ने युवक को बांस की एक टोकरी देते हुए उसमें पानी भरकर लाने के लिए कहा। युवक टोकरी में जल भरने में असफल रहा, बुद्ध ने यह कार्य निरंतर जारी रखने के लिए कहा युवक प्रतिदिन टोकरी में जल भरने का प्रयास करता किंतु सफल नहीं हो पाता।
Gautam Buddha Life Motivational Story | Satsang Ka Mahatva
कुछ दिनों बाद बुद्ध ने उससे पूछा इतने दिनों से टोकरी में लगातार जल डालने से क्या टोकरी में कोई फर्क नजर आया? युवक बोला एक फर्क जरूर नजर आया। पहले टोकरी के साथ मिट्टी जमा होती थी, अब वह साफ दिखाई देती है। कोई गंदगी नहीं दिखाई देती और इसके छेद पहले जितने बड़े नहीं रहे, वो बहुत छोटे हो गए।
तब बुद्ध ने उसे समझाया यदि इसी तरह उसे पानी में निरंतर डालते रहोगे तो कुछ दिनों में ही ये छेद खुलकर बंद हो जाएंगे और टोकरी में पानी भर पाओगे। इसी प्रकार जो निरंतर सत्संग करते है, उसका मन एक दिन अवश्य निर्मल हो जाता है। अवगुणों के छिद्र भरने लगते है और गुणों का जल भरने लगता है।
युवक ने बुद्ध से अपनी समस्या का समाधान पा लिया। निरंतर सत्संग से दुर्जन भी सज्जन हो जाता है, क्योंकि महापुरुषों की पवित्र वाणी उनके मानसिक विकार को दूर कर उनमें सद्विचारों का आलोक प्रसारित कर देती है।
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