दोस्तों आज के वर्तमान समय में तेरहवीं के बाद खाने का बड़ा चलन है जिसे हम मृत्युभोज भी कहते है। आज ज्यादातर लोग पूजा और तर्पण के बाद अपने सामर्थ्य से ज्यादा करते हुए ब्राह्मणों के अलावा रिश्तेदारों और गांव के लोगों को भी भोजन कराते हैं। इस उम्मीद से कि उनके मृत परिजन की आत्मा को शांति मिल सके। लेकिन क्या आप जानते है, हमारे धर्मशास्त्रों में इस बात का कोई प्रमाण नहीं मिलता कि मृत्युभोज पर बड़ा आयोजन किया जाना चाहिए। तो फिर मृत्युभोज Mrityu Bhoj का यह चलन कहाँ से शुरू हुआ? और क्या इसे खाने से हम और आप पाप के भागीदार बनते है?
आखिर क्यों नहीं खाना चाहिए मृत्यु भोज | Mrityu Bhoj Kyu Nahi Karna Chahiye
जैसा कि आप सब जानते है, गरुड़ पुराण में मनुष्य के कर्मों का लेखा जोखा होता है जिसने यह भी बताया गया है कि मृत्यु के बाद आत्मा के साथ क्या क्या होता है और किस तरह से एक जीव आत्मा को स्वर्ग या फिर नर्क की प्राप्ति होती है। इसके अलावा इस धर्म ग्रंथ में इसका भी जिक्र है कि मृत्यु होने पर परिजनों को क्या क्या करना चाहिए?
गरुड़ पुराण के अनुसार जब कोई मृत्यु को प्राप्त हो जाता है तो उसके परिजनों को आत्मा की शांति और यमलोक की यात्रा तय करने के लिए पूजा करनी चाहिए ताकि उस मृत्यु आत्मा को इस कठिन रास्ते पर चलने की शक्ति मिल सके। दरअसल, जब जीव आत्मा शरीर का त्याग करती है तब वह निर्बल हो जाती है। ऐसे में उसके परिजन 12 दिनों तक जो पिंडदान करते है उसे खाने से जीव आत्मा को चलने की शक्ति मिलती है। मृत्यु के बाद 10 दिनों तक जो पिंडदान किए जाते हैं, उसे मृत आत्मा के विभिन्न अंगों का निर्माण होता है। ग्यारहवें और 12 वें दिन के पिंडदान से शरीर पर मांस और त्वचा का निर्माण होता है। फिर 13 वें दिन जब तेरहवीं की जाती है तब मृतक के नाम से जो पिंडदान किया जाता है। उससे वह यमलोक की यात्रा तय करते है।
तेरहवीं क्यों मनाई जाती है | Terahvi Kyu Manayi Jati Hai | Mrityu Bhoj Kyu Kiya Jata Hai
मान्यता है कि आत्मा 12 दिनों तक पैदल चलकर कई कष्टों को झेलकर अपने कर्तव्य अर्थात प्रभु धाम तक पहुंचते है। इसलिए हिंदू धर्म में तेरहवीं करने का विधान है, लेकिन कभी कभी इसे समय के अभाव या अन्य कारण से भी Terahvi तेरहवीं तीसरे दिन या 12 वें दिन भी की जा सकती है। इस दिन मृतक की सबसे पसंदीदा खाद्य पदार्थ बनाए जाते है और फिर ब्रह्म भोज आयोजित करके ब्राह्मणों को दान दक्षिणा देकर मृतक की आत्मा की शांति की प्रार्थना की जाती है।
यहाँ पर आपकी जानकारी के लिए बता दें ब्रह्माभोज को ही आजकल मृत्युभोज Mrityu Bhoj कहा जा रहा है जो उचित नहीं है। क्योंकि ब्रह्माभोज केवल ब्राह्मणों को ही कराया जाता है ना की रिश्तेदारों को और गांव वालों को। गरुड़ पुराण के अनुसार 11 वें दिन ब्राह्मणों को भोज और तेरहवीं के दिन एक या फिर 13 ब्राह्मणों को भोजन कराना चाहिए या फिर अपने सामर्थ्य के अनुसार भोजन कराना चाहिए। ब्राह्मणों को भोजन के बाद एक सफेद साफी, जनैव और एक पात्र दान दिया जाना चाहिए। इससे आत्मा को शांति मिलती है।
दोस्तों अब आप यह जरूर सोच रहे होंगे कि मृत्युभोज Mrityu Bhoj का कोई प्रावधान नहीं है तो आखिर इसकी शुरुआत कैसे हुई? दरअसल गरुड़ पुराण में पगड़ी रस्म का भी उल्लेख मिलता है। यह तब की जाती है जब परिवार की मुखिया की मृत्यु हो जाती है। इसके बाद घर का नया मुखिया चुना जाता है और घर के सबसे अधिक उम्र के जीवित मनुष्य को पूरे रस्म तरीके से पगड़ी बांधी जाती है। रस्म पगड़ी, संस्कार अंतिम संस्कार के चौथे दिन आयोजित किया जाता है। यही नहीं बल्कि घर का नया मुखिया चुने जाने पर रिश्तेदारों और गांव वालों को भी भोजन के लिए आमंत्रित किया जाता है, जिसे आजकल मृत्युभोज से जोड़कर देखा जा रहा है।
क्या मृत्युभोज करने से हम पाप के भागीदार बनते है? Kya Mrityu Bhoj Karne Se Hum Paap Ke Bhagidar Bante Hai
अब आते है हम अंतिम सवाल पर अगर कोई मृत्यु भोज का आयोजन करा रहा है तो क्या वह गलत है और जो भोज खा रहा है, क्या वह कोई पाप कर रहे है?
तो दोस्तों, इसका उत्तर वैसे सीधे तौर पर तो हमारे धर्म शास्त्रों में देखने को नहीं मिलता। लेकिन अगर आप महाभारत के अनुसार एक प्रश्न पर गौर करेंगे तो आपको इसका उत्तर मिल जाएगा। दरअसल यह बात महाभारत के युद्ध से पहले की है। श्रीकृष्ण ने दुर्योधन के घर जाकर संधि करने को कहा। भगवान श्रीकृष्ण ने दुर्योधन को हर तरह से युद्ध नहीं करने की सलाह दी, लेकिन दुर्योधन जब नहीं माना तो श्रीकृष्ण वहाँ से लौटने लगे।
ऐसे में दुर्योधन ने उन्हें भोजन करने के लिए कहा। तब श्रीकृष्ण ने कहा, हे! दुर्योधन जब खिलाने वाले और खाने वाले का मन प्रसन्न हो तभी भोजन करना चाहिए। लेकिन जब दोनों के दिल में दर्द और पीड़ा हो, ऐसी स्थिति में कभी भी भोजन नहीं करना चाहिए। क्योंकि ऐसा भोजन व्यक्ति के ऊर्जा का नाश कर देता है और दोस्तों जब किसी सगे संबंधी की मृत्यु होती है तब तेरहवीं पर आने वालों और जिनके घर में मौत हुई हो दोनों के मन में उनके मृत्यु का दर्द होता है। ऐसे में भोजन करवाने वाला और करने वाला दोनों ही दुखी होते है अर्थात् मृत्यु भोज या फिर तेरहवीं पर भोजन नहीं करना चाहिए।
तो मित्रों हम अंत में यही कहेंगे कि दिखावे की इस दुनिया में मृत्यु भोज भी एक दिखावा ही है जिससे काफी ज्यादा पैसे का नुकसान होता है। इसलिए हमें ना मृत्युभोज करना चाहिए और ना ही इसमें शामिल होना चाहिए।
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